अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव पांच नवंबर को कराया जाएगा. इसके अलावा इस बार सीनेट के 34 सदस्यों और हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव के सदस्यों के साथ-साथ 11 राज्यों में गवर्नर का भी चुनाव हो रहा है. आइए इस चुनाव से जुड़े तथ्यों से आपको अवगत कराते हैं.
नई दिल्ली:
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में अब एक हफ्ते से भी कम का समय रह गया है.चुनाव जीतने के लिए डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन धड़े ने जी-जान लगा दिया है.इस बार राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव के साथ-साथ सीनेट के 34 सदस्यों और हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव के सदस्यों और 11 राज्यों में गवर्नर का भी चुनाव हो रहा है. आइए हम अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव से जुड़े उन आंकड़ों के बारे में बताते हैं,जो इस चुनाव की दशा और दिशा के साथ-साथ अमेरिकी संसद के भविष्य को भी निर्धारित करेंगे.
अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति को चुनने के लिए 18 करोड़ 65 लाख अमेरिकी नागरिक पात्र मतदाता हैं. अमेरिका के सभी 50 राज्यों के मतदाता हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव के सदस्यों का चुनाव भी करेंगे.हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव के सभी 435 सीटों पर चुनाव हो रहा है.अमेरिका के हर राज्य के लिए हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव के लिए चुने जाने वाले सदस्यों की एक संख्या निर्धारित है. यह संख्या उस राज्य की जनसंख्या पर निर्भर करती है.
अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति को चुनने के लिए 18 करोड़ 65 लाख अमेरिकी नागरिक पात्र मतदाता हैं
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अमेरिकी क्षेत्रों से हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव के लिए छह सदस्य चुने जाते हैं.इन सदस्यों के पास मतदान का अधिकार नहीं होता है.ये छह अमेरिकी क्षेत्र हैं- कोलंबिया डिस्ट्रिक्ट,अमेरिकी समोआ,गुआम,प्यूर्टो रिको,उत्तरी मारियाना द्वीप और यूएस वर्जिन द्वीप समूह. प्यूर्टो रिको को छोड़कर बाकी के क्षेत्रों के सदस्य हर दो साल पर चुने जाते हैं.प्यूर्टो रिको से सदस्य चार साल में एक बार चुने जाते हैं.
अमेरिकी सीनेट का अध्यक्ष उपराष्ट्रपति होते हैं. वो सीनेट के सत्र की अध्यक्षता करते हैं. राष्ट्रपति चुनाव परिणामों की घोषणा भी उपराष्ट्रपति ही करते हैं.
अमेरिका के राज्यों को डेमोक्रेट या रिपब्लिकन पार्टी का समर्थन करने वाले के रूप जाना जाता है.इससे वहां चुनाव परिणाम का अनुमान लगाना आसान हो जाता है.इन राज्यों को इन राजनीतिक पार्टियों के रंग के आधार पर नीले या लाल राज्यों के रूप में भी पहचाना जाता है.खासकर साल 2000 के बाद से.लाल रंग रिपब्लिकन पार्टी का प्रतीक है तो नीला रंग डेमोक्रेटिक पार्टी का.
डोनाल्ड ट्रंप दूसरी बार ह्वाइट हाउस में जाने के लिए चुनाव लड़ रहे हैं.
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इसके बाद भी कुछ राज्य ऐसे हैं,जहां लड़ाई इतनी साफ नहीं है कि उनके बारे में पूर्वानुमान लगाया जा सके.वहां डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवारों के वोट कम-अधिक होते रहते हैं.इन राज्यों को बैटलग्राउंड स्टेट्स,स्विंग स्टेट्स,पर्पल स्टेट्स या टॉस-अप स्टेट्स के नाम से जाना जाता है.
स्विंग स्टेट की श्रेणी में उन राज्यों को रखा जाता है,जहां जनमत सर्वेक्षणों से पता चलता है कि वहां जीत का अंतर पांच फीसदी से कम का है.इस साल के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में एरिजोना,जॉर्जिया,मिशिगन,नेवादा,उत्तरी कैरोलिना,पेंसिल्वेनिया और विस्कॉन्सिन को इस श्रेणी में रखा गया है.
कमला हैरिस 2020 के चुनाव में उपराष्ट्रपति चुनी गई थीं. उपराष्ट्रपति ही सीनेट का प्रमुख होता है.
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राष्ट्रीय स्तर पर कोई उम्मीदवार सबसे ज्यादा वोट हासिल कर सकता है,जैसे हिलेरी क्लिंटन ने 2016 के चुनाव में राष्ट्रीय स्तर पर सबसे ज्यादा वोट हासिल किए थे. लेकिन इलेक्टोरल कॉलेज चुनाव में वो डोनाल्ड ट्रंप से हार गई थीं.ट्रंप ने उन स्विंग स्टेट में भी जीत दर्ज की थी,जहां क्लिंटन के जीत की भविष्यवाणी की गई थी,जैसे पेनसेल्विनिया,मिशिगन और विस्कांकिन. इलेक्टोरल कॉलेज में मतदाताओं को चुनाव से पहले राजनीतिक दलों द्वारा चुना जाता है. ये मतदाता आमतौर पर पार्टी के पदाधिकारी या समर्थक होते हैं.इलेक्टोरल कॉलेज की बैठक में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के लिए निर्णायक वोट डाले जाएंगे.इस साल 17 दिसंबर को वोट डाले जाएंगे.
मेन और नेब्रास्का में कैसे होता है चुनाव
अमेरिका के 50 राज्यों में से 48 में जिस राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को सबसे अधिक वोट मिलते हैं,वह उस राज्य के सभी मतदाताओं को जीत लेता है. लेकिन दो राज्यों- मेन और नेब्रास्का में यह नियम लागू नहीं होता है.ये दोनों राज्य अपने वोटों को वितरित करने के लिए एक वैकल्पिक पद्धति का उपयोग करते हैं.इसे कांग्रेसनल डिस्ट्रिक्ट पद्धति कहा जाता है.
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