Editorial: केंद्रीय बैंक की डिजिटल मुद्रा और भविष्य

साइबर सुरक्षा
Mar 12, 2024

CBDC : प्रायोगिक तौर पर जारी सीबीडीसी-आर फिलहाल लोगों के बीच आपसी लेनदेन तथा लोगों और व्यापारियों के बीच के लेनदेन की सुविधा देता है।

CBDC : प्रायोगिक तौर पर जारी सीबीडीसी-आर फिलहाल लोगों के बीच आपसी लेनदेन तथा लोगों और व्यापारियों के बीच के लेनदेन की सुविधा देता है।

भारतीय रिजर्व बैंक 2022 के उत्तरार्द्ध से ही प्रायोगिक स्तर पर केंद्रीय बैंक की डिजिटल मुद्रा (सीबीडीसी) जारी कर रहा है। खुदरा क्षेत्र में ब्लॉकचेन तकनीक पर आधारित सीबीडीसी-आर को एक सीमित उपयोगकर्ता समूह (सीयूजी) के बीच जारी किया गया था जिसमें भाग लेने वालों में ग्राहक और व्यापारी शामिल हैं। 

प्रायोगिक तौर पर जारी सीबीडीसी-आर फिलहाल लोगों के बीच आपसी लेनदेन तथा लोगों और व्यापारियों के बीच के लेनदेन की सुविधा देता है जिसमें डिजिटल रुपये वाले वॉलेट का इस्तेमाल किया जाता है। 

अब तक के अनुभव के बाद रिजर्व बैंक ने प्रस्ताव रखा है कि इस मुद्रा की प्रोग्रामेबिलिटी (इस मामले में गणना करने वाली ऐसी व्यवस्था जो निर्देशों को समझने, स्वीकारने और पालन करने में सक्षम हो) और ऑफलाइन कार्य क्षमता को आजमाया जाए जिससे न केवल डिजिटल मुद्रा को अपनाने के मामले बढ़ेंगे बल्कि सार्वजनिक नीति संबंधी लक्ष्य हासिल करने में भी मदद मिलेगी। 

जैसा कि केंद्रीय बैंक ने अपनी घोषणा में जाहिर किया, ‘प्रोग्रामेबिलिटी’ के तहत सरकारी एजेंसियों जैसे उपयोगकर्ताओं को यह इजाजत दी जाएगी कि वे यह सुनिश्चित करें कि तयशुदा लाभ के लिए भुगतान किया जाए। इसका अर्थ यह हुआ कि चुनिंदा अंतर्निहित नियम मुद्रा के उपयोग पर प्रतिबंध लगाएंगे।

ऐसी विशेषताओं के साथ सरकार भी यह सुनिश्चित करने की स्थिति में होगी कि मुद्रा का उपयुक्त इस्तेमाल हो। उदाहरण के लिए अगर सरकार या कोई और एजेंसी स्कूलों के विद्यार्थियों को किताबें खरीदने के लिए डिजिटल मुद्रा में भुगतान करती है तो इसका इस्तेमाल केवल किताबों की दुकानों में होगा। 

डिजाइन के मुताबिक अगर मुद्रा एक तय अवधि तक इस्तेमाल नहीं की जाती है तो यह भेजने वाले के खाते में वापस लौट सकती है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि पैसा सही ढंग से खर्च हो। इससे धोखाधड़ी का जोखिम भी कम हो जाएगा। ऐसे ही तरीकों का इस्तेमाल निजी कंपनियों द्वारा खास व्यय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भी किया जा सकता है। 

उदाहरण के लिए ईंधन व्यय और कर्मचारियों की कारोबारी यात्राओं पर होने वाला व्यय। खुदरा क्षेत्र में इस्तेमाल के अलावा बेहतर प्रयोग से वित्तीय बाजारों में इसे अपनाने की गति भी बढ़ेगी। रिजर्व बैंक के वक्तव्य में एक और अहम पहलू शामिल था और वह सीबीडीसी के ऑफलाइन इस्तेमाल से संबंधित था। इसे कमजोर या सीमित इंटरनेट उपलब्धता वाले क्षेत्रों में भी भुगतान किया जा सकेगा।

यदि सही ढंग से क्रियान्वयन किया जाए तो ये दोनों काम सरकारी व्यय को किफायती बना सकते हैं और लोक कल्याण में सुधार कर सकते हैं। अक्सर यह बहस देखने को मिलती है कि सरकार को मूल्य सब्सिडी देनी चाहिए या नकद हस्तांतरण करना चाहिए। भारत के हालिया अनुभव बताते हैं कि नकद हस्तांतरण अधिक किफायती है। 

डिजिटल मुद्रा में प्रोग्रामेबिलिटी संतुलन को नकद हस्तांतरण की ओर झुका देगी क्योंकि इससे एक तरह की निश्चितता आएगी कि मुद्रा का इस्तेमाल उसी उद्देश्य के लिए होगा जिसके लिए मुद्रा दी जा रही है। यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि प्रोग्रामेबिलिटी से फंजिबिलिटी पर कोई असर नहीं होगा। 

फंजिबिलिटी से तात्पर्य किसी वस्तु के उस गुण से है जिसके तहत उसकी व्यक्तिगत इकाइयां आपस में परिवर्तनीय होती हैं। जैसा कि रिजर्व बैंक के अधिकारियों ने हाल के संवाददाता सम्मेलनों में कहा फंजिबिलिटी सीमित समय तक ही स्थगित रहेगी और इस दौरान इसके वांछित उद्देश्य की प्राप्ति होगी।

भारत ने बीते कुछ सालों में जो डिजिटल बुनियादी ढांचा तैयार किया है, खासतौर पर भुगतान के क्षेत्र में, उसमें सीबीडीसी के इस्तेमाल की काफी संभावना है। निश्चित तौर पर ऐसे कार्यक्रम को बड़े पैमाने पर अपनाने में समय लगेगा। अक्सर वित्तीय दृष्टि से बहिष्कृत लोग डिजिटल रूप से भी बहिष्कृत रहते हैं। सीबीडीसी के इस्तेमाल के लिए बुनियादी डिजिटल साक्षरता और मोबाइल फोन की आवश्यकता है। 

बहरहाल, चूंकि सीबीडीसी अभी भी प्रायोगिक चरण में है इसलिए उसके उपयोग और कामकाज के अनुभवों के आधार पर ही रिजर्व बैंक उसमें जरूरी संशोधन करेगा ताकि उसे व्यापक स्तर पर जारी किया जा सके। सीबीडीसी की संभावित शुरुआत का अध्ययन कर रहे अन्य केंद्रीय बैंक भी रिजर्व बैंक के अनुभव पर करीबी नजर रखेंगे।

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